समस्त साधक गुरुओं तथा उपदेशकों द्वारा भगवद् प्रेमी भक्तों को भ्रामक प्रचार रूप धोखा -
इन लोगों द्वारा मौखिक एवं लिखित रूप में भगवद् प्रेमी जिज्ञासुओं को बुलाया जाता है परमात्मा को जनाने, दिखाने के लिए तथा तत्त्वज्ञान प्रदान करने के लिए, परन्तु भगवत् प्रेमी – जुज्ञासु एवं श्रद्धालु भक्तगण जब जानने-देखने एवं प्राप्त करने के हेतु इनके सम्पर्क में आते हैं तब आत्मा (सः एवं ज्योति) को ही, वह भी सः ज्योति भी नहीं, हँसो ज्योति मात्र ही और पुराण काल के पश्चात से वर्तमान तक के प्रायः सभी ही अब पतनोन्मुखी सोsहँ (श्वाँस – निःश्वाँस) वाला अजपा जप वाले को ही जना-दिखा कर तथा इसकी साधना को ही बता एवं कराकर सद्ग्रंथों से तुरन्त प्रमाणित करते हुये आत्मा को ही परमात्मा तथा साधना को ही तत्त्वज्ञान कहकर भ्रमित करते हुये, धोखा दिया गया एवं दिया जा रहा है। जबकि –
सच्चाई यह है कि जीव ही आत्मा नहीं और आत्मा ही परमात्मा नहीं; जीव ही ब्रह्म नहीं और ब्रह्म ही परमब्रह्म नहीं; जीव ही ईश्वर नहीं और ईश्वर ही परमेश्वर नहीं; अहम् ही सोsहँ – हँसो नहीं और सोsहँ – हँस ही परमहंस नहीं; रूह ही नूर नहीं और नूर ही अल्लाहतआला नहीं; सेल्फ ही सोल नहीं और सोल ही गॉड नहीं; हृदय गुफा ही परमधाम नही; अध्यापक ही गुरु नहीं और गुरु ही सद्गुरु नहीं तथा सोsहँ की अजपा जाप क्रिया एवं ध्यान आदि साधना ही कदापि तत्त्वज्ञान नहीं।
-------------- सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस
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