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31 December, 2017
TIME
06 November, 2017
सत्संग का महत्व
सत्संग में -कायदा नही,
व्यवस्था होती है l
सत्संग में - सूचना नही,
समझ होती है l
सत्संग में - कानून नही,
अनुशासन होता है l
सत्संग में - भय नही,
भरोसा होता है l
सत्संग में - शोषण नही,
पोषण होता है l
सत्संग में - आग्रह नही ,
आदर होता है l
सत्संग में - सम्पर्क नही,
सम्बंध होता है l
सत्संग में - अर्पण नही,
समर्पण होता है l
इसलिये स्वयं को..
सत्संग से जोड़े रखे.
29 October, 2017
The power of your love
Even in the smallest of moments, your appreciation of life is unbounded. Experience all the beauty that is, and expand that beauty with the power of your love.
24 October, 2017
प्रभु का रास्ता बड़ा सीधा है
प्रभु का रास्ता बड़ा सीधा है,
और बड़ा उलझा भी,!!
बुद्धि से चलो तो बहुत उलझा,
भक्ति से चलो तो बड़ा सीधा,
विचार से चलो तो बहुत दूर,
भाव से चलो तो बहुत पास
नजरो से देखो तो कण कण मे,
और अंतर्मन से देखो तो जन जन में"
19 October, 2017
सत्कर्म ही जीवन है
नदी का पानी मीठा होता है क्योंकि वो पानी देती रहती है।
सागर का पानी खारा होता है क्योंकि वो हमेशा लेता रहता है।
नाले का पानी हमेशा दुर्गंध देता है क्योंकि वो रूका हुआ होता है।
यही जिंदगी है
देते रहोगे तो सबको मीठे लगोगे।
लेते रहोगे तो खारे लगोगे।और
अगर रुक गये तो सबको बेकार लगोगे।
निष्कर्ष : सत्कर्म ही जीवन है।
17 August, 2017
ज्ञान
ज्ञानाशिवाय भक्ती आंधळी आहे.
भक्तीशिवाय कर्म आंधळे आहे.
आणि ज्ञान, भक्ती व कर्म याशिवाय जीवन आंधळे आहे..............!
ज्ञान हे पैशापेक्षा श्रेष्ठ आहे कारण पैशाचे रक्षण तुम्हाला करावे लागते; ज्ञान तुमचेच रक्षण करते.
28 April, 2017
15 April, 2017
13 April, 2017
What is spiritual spiritual journey?
-Billy Corgan
12 April, 2017
Man and Joy
-Thomas Aquinas
11 April, 2017
You Only
- Swami Vivekananda
10 April, 2017
My perspective
09 April, 2017
True Prayer
08 April, 2017
Happiness - The Spiritual experience
Men without a spiritual life
02 April, 2017
सफर की शुरुआत
"जो सफर की शुरुआत 'सत्संग' से करते हैं।
"सतगुरु" उनके जीवन में 'खुशियों' के रंग भरते हैं।
जो सफर की शुरुवात 'सेवा' से करते हैं,
उनके चेहरों पर खुशियों के 'फूल' खिलते हैं।
और जो सफर की शुरुवात "सिमरण" से करते हैं,
वो सतगुरु के पावन "चरणों" में रहते हैं। .
प्यार के पल जाे हमे सतगुरु से मिले उसका एहसास ही काफी है .
बाकी जिदंगी शुकराने मे निकल जाए .यही अरदास ही काफी है
24 March, 2017
तू मेहरबान
सारे जगत को देने वाले
मैं क्या तुझको भेंट चढ़ाऊँ !
जिसके नाम से आए खुशबू
मै क्या उसको फूल चढ़ाऊँ !!.
वो तैरते तैरते डूब गये,
जिन्हे खुद पर गुमान था !
और वो डूबते डूबते भी तर गये..
जिन पर तू मेहरबान था !!
20 March, 2017
माया' क्या है ?
*आ. महापुरुषों,*
*धन निरंकार जी…!*
*'माया' क्या है ?
*और…*
*'माया' किसे कहते है ?*
*सर्वप्रथम दास यह स्पष्ट करना चाहूंगा की, यदि कोई इस माया को केवल धन (रूपये-पैसे) के रूप में ही मान लेता है, तो यह उसकी सबसे बडी भूल है |*
*यह सारा संसार दृष्टिगोचर है | अपने चर्मचक्षु से दिखाई देता है | किन्तू यह सारा संसार नाशवान, नश्वर है | एक ना इक दिन इसका अन्त होना निश्चित है | जो परिवर्तनशील, अनित्य, आने-जाने वाला है | यह केवल आभासमात्र है | जो कुछ भी यह नजर आता है, यह सारी 'माया' है | 'माया' रज, तम और सत्व इन तीन गुणों से युक्त होती है |*
*यह 'माया' प्रभु परमात्मा की बहिरंगा शक्ति है | जो प्रभु परमात्मा की शक्ति होकर भी ब्रम्ह से सदैव पृथक रहती है |*
*यह माया जड होने के कारण इसे प्रभु की निकृष्ट शक्ति माना गया है | माया और ब्रम्ह परस्पर विरोधी तत्व है | इसलिये, ब्रम्ह और माया एक जगह एक साथ नहीं रह सकते |*
*सुरज, चांद, सितारे, पृथ्वी, जल, तेज, वायु, जीव और आकाश इन नौ वस्तु से बने इस (प्रकृति) संसार को ही 'माया' ही कहते है | माया को ही अज्ञान और अहंकार भी कहा है |*
*जहां अहंकार है, निरंकार नहीं |"*
*माया को मिथ्या, असत्य कहा गया है |*
*जो जीव को हरदम अपनी ओर आकर्षित करती रहती है | जो सच को झूठ, और झूठ को सच का आभास कराती है | जो समस्त दु:खों की जननी है |*
*सतगुरु बाबाजी ने इस पद में जीव को माया के विषय को समझाने का प्रयास किया है…*
*पवित्र अवतार वाणी शब्द क्र.10.*
*"निलगगन में देखो प्राणी*
*सुरज चांद सितारें हैं |*
*अस्थाई है चमक दमक सब*
*मिट जानें यह सारें हैं |*
*नीचे धरती अग्नि जल हैं*
*इन सबका विस्तार बडा |*
*नाशवान हैं ये भी जग में*
*नश्वर यह संसार खडा |*
*मध्य जीव आकाश अरु वायु*
*इन तीनों का सूक्ष्म रूप |*
*इक दिन यह भी मिट जाएगा*
*तीनों का जो जुडा स्वरूप |*
*ये नौ वस्तु दृश्यमान हैं*
*जिसको कहते 'माया' है |*
*हुजुर सतगुरु बाबाजी ने उपरोक्त पद में समझाया है, की सुरज, चांद, सितारे, जल, अग्नि, धरती, वायु, जीव और आकाश यह नौ वस्तु नाशवान है | जिसको 'माया' कहते है |*
*आगे और भी विस्तार में बताया है…*
*पवित्र अवतार वाणी शब्द क्र. 85.*
*"बीत चुकी पर मन ललचाना*
*यह भी तो इक माया है |*
*भावी स्वप्नों में खो जाना*
*यह भी तो इक माया है |*
*इसलिये, सतगुरु बाबाजी बार बार हमें इस प्रभु से जुडने के लिये वर्तमान समय के सतगुरु के चरणों से जुडें रहने का सुझाव तथा उपदेश देते आ रहें है | तथा इस ठगीनी विषधर माया से बचने के लिये सदैव "वर्तमान में जीने" का संदेश देते रहें |*
*निरंकार को भूल के धन पर*
*आस लगाना माया है |*
*दिखलावे की प्रीत जता कर*
*मान बढाना माया है |*
*मोह वश हो के संत सेवा से*
*जी चुराना माया है |*
*ऋद्धि सिद्धि करामात हित*
*धुनि रमाना माया है |*
*ब्रम्हज्ञान बिन जितना भी है*
*पीना खाना माया है |*
*तीन गुणों का जितना भी है*
*ताना बाना माया है |*
*वरत नियम सुच संयम पूजा*
*दान कमाना माया है |*
*इस माया से मुक्ति हेतु*
*कर्म कमाना माया है |*
*मनमर्जी से जो भी करते*
*बिन माया कुछ और नहीं |*
*कहे 'अवतार' गुरु यदि बख्शे*
*माया का कोई जोर नहीं |*
*शहंशाह बाबा अवतार सिंह जी महाराज ने फरमाया, ब्रम्ह के बिन जो कुछ भी नजर आ रहा है, तीन गुणों से युक्त है, यह सब माया है | अन्त में अपना फैसला सुनातें हुए कहा है, यह जीव अपने मनमाने ढंग अर्थात मनमर्जी से जो कुछ भी कर्म (आचरण) करता है, यह सब 'माया' है |*
*इतना ही नहीं बल्कि इस माया से छुटकारा पाने हेतु दान-पुण्य, वैदिक कर्म-काण्ड करना, इस को भी तो 'माया' ही बतलाया है | इसलिये, हमें अपने मन-बुद्धि से कोई भी मनमाना आचरण, कर्म नहीं करना चाहिए | केवल गुरुमत को अपनाने की सलाह सन्त-महापुरुष देतें है |*
*गुरुमत को अपनाने से ही इस मायाबद्ध जीव की कर्म के बंधन से मुक्तता होती है | और यह माया जो जीव पर हावि हो चुकी है, जीव की दासी बनने में सहाय्यक होती है |*
*पवित्र अवतार वाणी शब्द क्र. 51.*
*रंग बिरंगी माया जग की*
*जो तेरे मन भाती है |*
*पक्की बात समझ ले प्राणी*
*यह आती और जाती है |*
*जो कुछ भी यह नजर आ रहा*
*आने जाने वाला है |*
*अन्धबुद्धि व मुरख मानव*
*जो इसका मतवाला है |*
*नाशवान से प्रीत लगा के*
*अन्त में रोना पडता है |*
*हाथ व पल्ले कुछ नहीं पडता*
*सबकुछ खोना पडता है |*
*माया के वशीभुत होकर यह जीव अपने मुल प्रभु परमात्मा से जुदा हो चुका है | माया में आसक्त होकर प्रभु परमात्मा से विरक्त हुआ है | तथा माया के सन्मुख होकर प्रभु से विमुख हो चुका है | इस माया के अधीन होकर अपनी दुर्दशा का कारण बन चुका है | इसलिये, अनादि काल से यह मायाबद्ध जीव दु:ख, कष्ट और पीडा भोग रहा है |*
*पवित्र अवतार वाणी शब्द क्र. 84.*
*जो जाने माया का स्वामी*
*उसकी माया दासी है |*
*पवित्र अवतार वाणी शब्द क्र. 241.*
*उसके काम करें यह माया*
*जो सतगुरु को भाता है |*
*पवित्र अवतार वाणी शब्द क्र. 261.*
*जग की माया निज सेवक को*
*अपने हाथ दिखाती है |*
*बच्चें को दे जन्म सर्पिणी*
*आप ही क्यों खा जाती है |*
*दु:ख पडने पर माया राणी*
*सेवक को ही लेती खा |*
*ज्यों बन्दरिया अपने बच्चे*
*निज पग नीचे लेत दबा |*
*पर भक्तों से मायारानी*
*सदा सर्वदा डरती है |*
कहे 'अवतार' गुरु के जन का
माया पानी भरती है |
यह जीव मायाधीन है और ब्रम्ह मायाधीश है | तथा यह ब्रम्ह 'माया और जीव' का स्वामी है | यह माया केवल हरि और हरि के जन (भक्त) इनसें डरती है | और इनसें कोसों दूर रहती है | इस ब्रम्ह को अपनाकर ही यह जीव अपना पार उतारा कर सकता है | इसके लिये हमें गुरु का प्यारा सेवक बन कर तथा सदैव गुरु की आज्ञा में रहकर गुरु को रिझाना होगा | एवं गुरु व हरि की समान रूप से भक्ति करके प्रभु पाकर इस माया से उत्तीर्ण हो सकते है | इसलिये, एक 'भक्त' की अवस्था को प्राप्त करना होगा |
त्रूटीयों को बख्श लेना जी…!
धन निरंकार जी…!
-नितिन खाडे,
कल्याण.
08 March, 2017
भगवान
*पाँच तत्व का कोड है भगवान*
*जिससे यह ब्रह्माण्ड बना*
*भ + ग + व + आ + न*
*भूमि (धरती), गगन (आकाश),*
*वायु (हवा), अग्नि (आग),*
*नीर (पानी)*
*क्या अब भी कोई है*
*जिसने भगवान को देखा*
*अथवा जाना नही..?*
*अब अपने अन्दर झांक कर देखो*
*भगवान नज़र भी आएगा*
*और महसूस भी होगा*
23 February, 2017
आज के दिन
आज के दिन एक माँ ने जन्मा था ऐसा लाल ,
वर्षों तक प्यासी रूहों को जिसने किया निहाल /
बंदे का रूप लेकर अवतार आया था
जग का बन कर हरदेव पालनहार आया था।
बांटा है वो उजाला जो कम कभी ना होगा ,
ऐसा भण्डार खोला,खत्म कभी ना होगा /
मोहनी सी सूरत थी ,मुस्कान थी गजब की ,
इंसान की शक्ल में समाई थी सूरत रब की /
चाबी खुदा के घर की ,हाथों में लेकर आया ,
भटकी हुई रूहों को है रास्ता दिखाया /
दिल लाया माँ के जैसा ,राजमाता का दुलारा ,
तभी तो संतो इसको कहते थे बख्शनहारा /
संसार के भले का बीड़ा था वो उठाया ,
हर पल जुटा था वो तो ,दिन रात सब भुलाया /
ना चैन की फ़िक्र थी ना नींद ही थी प्यारी ,
संसार के भले की छाई थी बस खुमारी /
बस एक नजर इसकी सुखों का थी खजाना ,
सदियों तलक रहेगा दीवाना इसका ज़माना /
साकार रूप में भी निरंकार रूप में भी ,
कण कण में बसने वाला है छाँव धुप में भी /
तीनो जहां का मालिक ,बरह्मज्ञान का सौदागर ,
रब से करादे बातें रब सामने दिखा कर /
जीवन की राह असल में दिखाई तो आपने हआज के दिन एक माँ ने जन्मा था ऐसा लाल ,
वर्षों तक प्यासी रूहों को जिसने किया निहाल /
बंदे का रूप लेकर अवतार आया था
जग का बन कर हरदेव पालनहार आया था।
बांटा है वो उजाला जो कम कभी ना होगा ,
ऐसा भण्डार खोला,खत्म कभी ना होगा /
मोहनी सी सूरत थी ,मुस्कान थी गजब की ,
इंसान की शक्ल में समाई थी सूरत रब की /
चाबी खुदा के घर की ,हाथों में लेकर आया ,
भटकी हुई रूहों को है रास्ता दिखाया /
दिल लाया माँ के जैसा ,राजमाता का दुलारा ,
तभी तो संतो इसको कहते थे बख्शनहारा /
संसार के भले का बीड़ा था वो उठाया ,
हर पल जुटा था वो तो ,दिन रात सब भुलाया /
ना चैन की फ़िक्र थी ना नींद ही थी प्यारी ,
संसार के भले की छाई थी बस खुमारी /
बस एक नजर इसकी सुखों का थी खजाना ,
सदियों तलक रहेगा दीवाना इसका ज़माना /
साकार रूप में भी निरंकार रूप में भी ,
कण कण में बसने वाला है छाँव धुप में भी /
तीनो जहां का मालिक ,बरह्मज्ञान का सौदागर ,
रब से करादे बातें रब सामने दिखा कर /
जीवन की राह असल में दिखाई तो आपने है ,
तू कल भी साथ में था तू आज भी साथ में है।....
इक मसीहा
इक मसीहा अमन चैन का पैगाम दे गया,
नमीं ऑंखो को और लबों को मुस्कान दे गया |
आओ मिल कर संभाले पत्ता पत्ता, डाली डाली,
बेजोड़ बागबां ये गुलिस्तां दे गया |
कहीं एकता की राहें ढूंढ पाना न हो मुमकिन,
इसलिए वो अपने कदमों के निशान दे गया |
एक एहसान और कर दिया जाते जाते ,
इस माँ के रूप में वो भगवान दे गया |
21 February, 2017
13 February, 2017
Secret of everything
10 February, 2017
Serenity and acceptance
07 February, 2017
Surrender
Surrender is the most difficult thing in the world while you are doing it and the easiest when it is done. - Bhai Sahib
04 February, 2017
31 January, 2017
रहमत
कुरबान जाऊँ तेरी रहमत पर, एहसान किया और जतलाया नहीं
बिना माँगें इतना दिया , दामन मेँ मेरे , समाया नहीं
जितना दिया सतगुरू ने मुझको , उतनी तो मेरी औकात नहीं
यह तो करम है उनका , वरना मुझ मेँ तो ऐसी बात नहीं ।
प्रेम का पाठ
प्रेम का पाठ नम्रता से शुरु होता है और दया की डिग्री लेकर क्षमा पे समाप्त होता है। प्यार करने वाले हमेशा झुकना पसंद करते हैं। जो अहंकार में डूबे हैं प्रेम कभी नहीं कर सकते।
29 January, 2017
A Rabbi and a ghost
"It was New Year's night, and the Rabbi was walking to his home when he met a shadowy figure. He was stunned to see that it was a man of the city who had recently died! "What are you doing here?" the Rabbi asked, "you are supposed to be dead."
"Rabbi, you know," replied the ghost, "that this is the night when souls reincarnate on earth. I am such a soul."
"And why were you sent back again?"
"I led a perfectly blameless life here on earth," the dead man told him.
"And yet," remarked the Rabbi, "you were forced to be born here again?"
"Yes," said the other, "when I passed on I thought about everything I had done and I found it so good; I had done everything just right. My heart swelled with pride, and just then I died. So I was sent back to pay for that."
The figure disappeared and the Rabbi, pondering, went on to his home. Shortly after, a son was born to his wife. The child became Rabbi Wolf, who was an extremely humble man."
Teacher vs Guru
A Teacher instructs you, a Guru constructs you. A Teacher sharpens your mind, a Guru opens your mind. A Teacher answers your question, a Gur...
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Fikar kare wo BAWARE, Jikar kare wo SADH, Uth farida Jikar kar, Teri FIKAR KAREGA ye AAP.
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तात मिले,पुनि मात मिले,सुत भरात मिले युवती सुखदाई , राज मिेले,गज बाज मिले,सब साज मिले,मनवांछित फल पाई , लोक मिलें,सुर लोक मिलें,विधि लोक मि...