"सिमरन" हाथ पैरो से नहीं होता है। वर्ना विकलांग
कभी नहीं कर पाते।
सिमरन ना ही आँखो से होता है
वर्ना सूरदास जी कभी नहीं कर पाते।
ना ही सिमरन
बोलने सुनने से होता है वर्ना "गूँगे" "बैहरे" कभी
नहीं कर पाते।
ना ही "सिमरन" धन और ताकत से
होता है वर्ना गरीब और कमजोर कभी नहीं कर
पाते।
"सिमरन" केवल भाव से होता है
एक अहसास
है "सिमरन"
जो हृदय से होकर विचारों में आता है
और हमारी आत्मा से जुड़ जाता है।
"सिमरन" भाव का सच्चा सागर है।
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