ईश्वर एक है नाम अनेको इसके है रूप हजार
बिन साकार के इस निरंकार का होता नहीं दीदार.
तन का सजाना ठीक है लेकिन मन का भी रूप सवार
तन के रोग तो थोड़े है पर मन के है रोग हजार.
झूटी चमक में खोया रहा जग सच को कभी नहीं जाना
जिसने बनाई सब श्रिष्टी ये ईश्वर न पहचाना
दुनिया भवर है मन है नैया और सतगुरु पतवार
इस पतवार के बिना है मन तू हो न सकेगा पार
बिन साकार के इस निरंकार का होता नहीं दीदार.
तन का सजाना ठीक है लेकिन मन का भी रूप सवार
तन के रोग तो थोड़े है पर मन के है रोग हजार.
झूटी चमक में खोया रहा जग सच को कभी नहीं जाना
जिसने बनाई सब श्रिष्टी ये ईश्वर न पहचाना
दुनिया भवर है मन है नैया और सतगुरु पतवार
इस पतवार के बिना है मन तू हो न सकेगा पार