सन्त-महापुरुष परोपकारी होते हैं I सदगुरु की कृपा से उन्हें जो ज्ञान मिला होता है, आनंद मिला होता है, उसे वे अपने तक ही सीमित नहीं रखते, बल्कि गली-गली, मुहल्ले-मुहल्ले में जाकर इसे बांटते हैं I महापुरषों के दिलों में ऊँच-नीच की कोई भावना नहीं होती I वे जाति-वर्ण का भेद नहीं मानते I उनकी नज़र में गरीब-अमीर सभी बराबर होते हैं I वे सभी से एक जैसा प्यार करते हैं उनका यही ध्यान होता है की ज्ञान से जो सुख उन्हें मिला है, वह औरों को भी मिले, सभी इससे लाभ उठा पाएं I इसलिए वे हर गली-मुहल्ले में जा-जाकर इसका प्रचार करते हैं I वे ज्ञान का आनंद अपने तक ही सीमित नहीं रखते I
-सदगुरु बाबा हरदेव सिंह जी महाराज, बुक : गुरुदेव हरदेव, भाग -1
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