जीव तीन रूपों में होता है -
१. एक शरीर में रहने वाला (एक राम दशरथ का बेटा)
२. सब शरीरो में रहने वाला (एक राम घट-घट में लेटा)
३. संसार का निर्माता जीव (एक राम का सकल पसारा)
ब्रह्म (निरंकार) सर्वव्यापी होने के कारण इस तीनो प्रकार के जीवो में भी है और इन सबसे अलग भी है (एक राम इन सब से न्यारा) | कहा भी है -
दसवाँ ब्रह्म अगोचर न्यारा सबके बीच समाया है | (अवतारवाणी, १०)
ऊपर बताये गए जीव के तीन रूपों में जो तीसरा रूप संसार का निर्माता कहा गया है, यह भी निराकार है, किन्तु सगुण निराकार है | ब्रह्म की भाँति निर्गुण निराकार नहीं | नौ द्वारो में इसे ही शामिल किया जाता है | "वायु जीव अकास विचाले" (अवतारवाणी, १०) कहने का भाव यही है कि शरीर के बाहर भी जीव (Principal Of Life) है | यह जीव सगुण निराकार है | इसमें सैट राज तम नामक तीनों गुण संसार बनाने में और शरीरो को धारण करने में सहायक होते हैं |
देहधारी जीव अगर अपना लक्ष्य माया (तन-मन-धन) को ही बनाये रहता है, तो जन्म-मरण के चौरासी-चक्र में घूमता रहता है और यदि अपना लक्ष्य परमात्मा-प्राप्ति को बनता है तो सतगुरु के शरणागत होकर मुक्ति प्राप्त कर लेता है |
- nirankari radio
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28 September, 2011
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Fikar kare wo BAWARE, Jikar kare wo SADH, Uth farida Jikar kar, Teri FIKAR KAREGA ye AAP.
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