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23 August, 2015

हर मुश्किल राँह मे जब आसान सफर लगता है
मुझे तो सिर्फ़ तेरी रहमतों का असर लगता है

ये दिल वीरान था एक सहरा बना हुआ
पर तेरी तस्वीर बैठा लूँ तो खाली दिल भी इक घर लगता है

तेरी मुस्कुराहट आँखों के सामने जब याद आती है
तो आसमाँ से भी ऊँचा मेरा सर लगता है

ज़माने के हर मोड़ पर फक़त ग़म है मिलते
तेरे आँचल मे सिमट जाँऊ तो प्यार का नगर लगता है

तेरा जलवा , तेरी सूरत हर तरफ है मौजूद
मुझे तो ये खुदा के दिवानों का शहर लगता है

ज्ञान का दीप जब से हैं मन मे जला
मेरी नज़रों में खुदा अब हर ब़शर लगता है

भूलकर भी दूर तुझसे हो ना जाँऊ दातार
क्योंकि हकीक़त का आईना मुझे ये तेरा दर लगता है.

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